‘द तुली रिसर्च सेंटर फॉर इंडिया स्टडीज़’ के संस्थापक और भारतीय सांस्कृतिक विरासत को संजोकर रखने में माहिर नेविल तुली का मानना है कि “हर किसी के अंदर मुगल-ए-आज़म का वास है.” उनका यह अद्भुत वाक्य ‘सेल्फ़ डिस्कवरी वाया रीडिस्कवरिंग इंडिया’ नामक प्रदर्शनी देखने के लिए पहुंचे 100 छात्रों के‌ लिए एकदम खरा साबित हुआ. इस प्रदर्शनी का आयोजन 15 से 30 मार्च, 2024 के‌ बीच न‌ई दिल्ली के इंडिया इंटरनैशनल सेंटर गैलैरी में किया जा रहा है.

उल्लेखनीय है कि प्रदर्शनी को ‘द तुली रिसर्च सेंटर फॉर इंडिया स्टडीज़’ द्वारा क्यूरेट किया गया है जो भारत की 100 से भी अधिक की सिनेमाई विरासत को अनोखे अंदाज़ में पेश करती है. गंगा जमुना, पाकीज़ा और मुगल-ए-आज़म’ जैसी कालजयी फ़िल्मों से लेकर देवी, क्रांति और काबुलीवाला जैसे मास्टरपीस के माध्यम से इस प्रदर्शनी में भारतीय सिनेमा के उत्सवी रंगों की अनोखी छटां देखने को मिलेगी.

इस प्रदर्शनी के आयोजन का मूल मक़सद भारत की सांस्कृतिक विरासत के नज़रिए से लोगों को ख़ुद की पहचान को तलाशने का मौका देना है. यह नेविल तुली की दूरदृष्टि का ही नतीजा है कि तमाम कलाकृतियों, शिल्पकृतियों, आरकाइव व स्मृति चिह्नों को मूल व डिजिटल स्वरूप में संजोकर इस प्रदर्शनी में पेश किया जा रहा है. यह प्रदर्शनी लोगों को आत्मचिंतन व ज्ञान की खोज करने के मार्ग पर ले जाने का कार्य करेगी.

नेविल तुली समझाते हुए कहते हैं, “द तुली रिसर्च सेंटर फॉर इंडिया स्टडीज़ परंपरा और आधुनिकता के बीच की खाई को पाटने का अहम कार्य करता आ रहा है. अपनी इस पहली प्रदर्शनी के माध्यम से हम भारतीय विरासत की विविधता और वैश्विक पटल पर इसके अद्भुत प्रभाव को पेश करने नायाब कोशिश कर रहे हैं.”

भारतीय और विश्व सिनेमा, फ़ाइन और पॉपुलर आर्ट्स व क्राफ़्ट्स, फ़ोटोग्राफ़ी, वास्तुशिल्प से जुड़ी विरासत, पशु कल्याण, पारिस्थितिकीय शिक्षा और सामाजिक विज्ञान के माध्यम से यह प्रदर्शनी लोगों को भारत की बहुमुखी पहचान से अवगत कराती है.

इस प्रदर्शनी के लिए सैंकड़ों शोध सामग्रियों और कलाकृतियों को  करीने से क्यूरेट किया गया है ताकि भारत की उत्सवी संस्कृति के मर्म को लोगों के सामने एक अलहदा अंदाज़ में पेश किया जा सके. इस प्रदर्शनी में 6000 साल में फैली भारतीय सभ्यता की ऊर्जावान झलक दिखाई देगी जिसके ज़रिए लोगों को भूतकाल और वर्तमान काल दोनों का अद्भुत संगम देखने को मिलता है.

आंगतुक जैसे इस प्रदर्शनी का अनुभव हासिल करने के लिए यहां पहुंचते हैं, उन्हें अपनी जड़ों को फिर से खोजने व उनसे जुड़ने और उन्हें अपने अंदर समाहित मुगल-ए-आज़म को ढूंढ निकालने का अवसर मिलता है. हर एक कलाकृति, फ़िल्म का हर एक फ़्रेम भारत की कालजयी विरासत की यादगार झलक पेश करता है.

नेविल तुली कहते हैं, “हमारा मानना है कि सेल्फ़ डिस्कवरी का संबंध सीधे तौर पर अपने सांस्कृतिक विरासत को फ़िर से खोजने से जुड़ा हुआ है. हमें उम्मीद है कि इस प्रदर्शनी के ज़रिए हम लोगों को आत्मावलोकन और दुनिया को जानने-समझने संबंधी निजी यात्रा के लिए प्रेरित कर सकेंगे.”

‘सेल्फ़ डिस्कवरी वाया रीडस्कवरिंग इंडिया’ महज़ एक प्रदर्शनी नहीं है, बल्कि ये भारतीय विरासत की झलक प्रस्तुत करने वाली अद्भुत मिसाल है. इस प्रदर्शनी को देखने‌ के लिए इंडिया इंटरनैशनल सेंटर में आंगतुक जैसे ही प्रवेश करते हैं वे भारत की समृद्ध व विविध सांस्कृतिक परंपराओं व समृद्ध विरासत से रू-ब-रू होते हैं.

नेविल तुली के शब्दों में, “आप भी ज़रूर आइए और भारतीय विरासत के जज़्बे को अपने अंदर छिपे मुगल-ए-आज़म को जगाने का मौका दीजिए.”

 

सेल्फ़ डिस्कवरी वाया रिडिस्कवरिंग इंडिया: भारतीय सिनेमाई इतिहास के ज़रिए देश की सांस्कृतिक विरासत को समझने का अनूठा प्रयास

 

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